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प्रणम्य शिरसादेवं गौरी पुत्रम् स्तोत्र का अर्थ और लाभ

अपडेट करने की तारीख: 10 जुल॰

भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश का पूजन भारत में और विश्वभर में गणेश चतुर्थी के त्योहार के दौरान बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। उनकी बुद्धि, विवेक विनम्रता और माता- पिता की भक्ति के गुणों ने उन्हें एक प्रिय देवता बना दिया है, जो केवल बाधाओं को दूर करने के लिए ही नहीं, अपितु अपने भक्तों पर अनुग्रह और कृपा भी बरसाते हैं।



भगवान गणेश के शक्तिशाली स्तोत्र: संकटों से मुक्ति और सफलता की कुंजी


भगवान गणेश को विघ्न-हर्ता कहा जाता है, जो सभी प्रकार की समस्याओं और बाधाओं को दूर करने वाले हैं। नारद पुराण से लिया गया एक विशेष स्तोत्र भगवान गणेश के सबसे प्रभावशाली स्तोत्रों में से एक है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में शांति, स्वास्थ्य लाभ, धन की वृद्धि, और सभी प्रकार की बुराइयों से निवृत्ति मिलती है। आइए, इस पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें और इसके माध्यम से अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करें।


भगवान गणेश के स्तोत्र का महत्व


भगवान गणेश के इस स्तोत्र का जाप करने से सभी प्रकार की समस्याएं और बाधाएं दूर हो जाती हैं। जब जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा आए, तो प्रत्येक बुधवार को इस स्तोत्र का पाठ करने से छः महीने के भीतर ही सभी वांछित फल प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र भयमुक्ति प्रदान करता है और जीवन में सिद्धि की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।


स्तोत्र के लाभ


  1. शांति और स्थिरता: इसके पाठ से मन और बुद्धि में शांति और स्थिरता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति का जीवन सफलता की ओर अग्रसर होता है।

  2. स्वास्थ्य लाभ: नियमित पाठ से स्वास्थ्य में सुधार होता है और शारीरिक एवं मानसिक सुख की प्राप्ति होती है।

  3. धन की वृद्धि: यह स्तोत्र धन की वृद्धि में सहायक होता है और जीवन में समृद्धि लाता है।

  4. विद्यार्थियों के लिए लाभकारी: विद्यार्थियों को विद्या में प्रगति और सफलता मिलती है।

  5. संकटों से मुक्ति: इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को समस्त प्रकार की संकटों और दुर्भावनाओं से मुक्ति मिलती है।

  6. सिद्धि की प्राप्ति: एक साल तक इसे नियमित रूप से पाठ करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।


पाठ विधि


  1. तैयारी: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक पवित्र स्थान पर बैठें।

  2. स्थापन: भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।

  3. संकल्प: मन में भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें।

  4. पाठ: भगवान गणेश के स्तोत्र का पाठ करें और उनका ध्यान करें।


भगवान गणेश का यह स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी स्तोत्र है, जिसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में शांति, स्वास्थ्य लाभ, धन की वृद्धि, और सभी प्रकार की बुराइयों से निवृत्ति मिलती है। भगवान गणेश की कृपा से इस स्तोत्र का पाठ करने वाले को सभी प्रकार की शुभ फल प्राप्त होते हैं और वे उनके जीवन में खुशहाली लाते हैं।

भगवान गणेश की भक्ति और उनके स्तोत्र का पाठ करके हम अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और जीवन को सफल बना सकते हैं। गणपति बप्पा मोरया!


नारद उवाच


प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।

भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुष्कामार्थसिद्धये ॥


नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें ।


प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।

तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ 2 ॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ 3

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ 4 ॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ॥ 5


जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है।

जो कोई भी सुबह, दोपहर और शाम इन बारह नामों को पढ़ता है, उसे कभी भी पराजय का डर नहीं देखना होगा और वह यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधन है।


विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ 6 ॥


जो शिक्षा ग्रहण करेगा उसे ज्ञान मिलेगा, जो धन कमाना चाहता है उसे धन प्राप्त होगा, जो पुत्र की इच्छा रखता है उसे पुत्र मिलेगा और जो मोक्ष चाहता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।


जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ 7 ॥


मंत्र का जाप करने से छह महीने के अंदर ही गणपति को फल दिखने लगेगा और एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।


अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥ 8 ॥


जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है।


इति श्रीनारदपुराणे सङ्कष्टनाशनं नाम गणेश स्तोत्रम् ।



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