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सरयू के तट पर: राजा दशरथ और ऋषि श्रृंगी की कथा

अपडेट करने की तारीख: 31 जुल॰


यह कथा सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या नगरी की है, जहां राजा दशरथ पुत्र न होने के दुःख से व्यथित हैं। उनकी रानी कौशल्या उन्हें महान ऋषि श्रृंगी के पास जाने का सुझाव देती हैं, जो पुत्र कामेष्टि यज्ञ में निपुण हैं और संतान सुख दिलाने में समर्थ हैं। इस यात्रा और यज्ञ के माध्यम से, अयोध्या में चार महान राजकुमारों - राम, लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न - का जन्म होता है, जो सूर्य वंश की महिमा को सदा के लिए अमर कर देते हैं।



सरयू नदी, जिसे मेगस्थनीज ने 'सोलोमत्तिस' और टालेमी ने 'सोरोबेस' कहा है, यह एक वैदिक कालीन नदी है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इसी के किनारे इंद्र ने दो आर्यों का वध किया था। (ऋग्वेद ४.१३.१८)


रामायण काल में यह नदी अयोध्या से होकर बहती है। दशरथ की अयोध्या नगरी और ऋषि श्रृंगी का आश्रम इसी के तट पर है। यह नदी दशरथ के पुत्र न होने के दुःख की साक्षी है और ऋषि श्रृंगी के प्रयासों की भी।"रानी कौशल्या! प्रतीत होता है, मेरे भाग्य में पुत्र सुख है ही नहीं, मैं अयोध्या की प्रजा से क्या कहूं? कि मैं उनको भावी राजा देने में असमर्थ रहा, मैं अपने पूर्वजों से क्या कहूं कि उनका सूर्य वंश अब अस्त होने वाला है।""नहीं महाराज! आप इस तरह विलाप न करें। एक बार हमें अपने जामात्रा से इस विषय में वार्तालाप कर लेना चाहिए। आप जानते है श्रृंगी पुत्र कामेष्टि यज्ञ में निपुण हैं। वह हमें और अयोध्या की प्रजा को कभी निराश नहीं करेगा।""ऋषि श्रृंगी!" दशरथ आशा भरे शब्दों के साथ कौशल्या को देखते हैं और उनके आश्रम जाने का विचार करते हैं।


ऋषि श्रृंगी का आश्रम सूर्यगढ़ा प्रखण्ड में पहाड़ों के बीच स्थित है। यहां की पहाड़ों की चट्टाने शंकु के आकार की है। यह आकर आश्रम तक आते-आते झुक जाते हैं। यहां का सौंदर्य अप्रतिम है। नित्य-प्रतिदिन यज्ञों, मंत्रो और सूक्तों की ध्वनि आश्रम को एक नवीन मूर्त रूप प्रदान करती है। महान ऋषि विभांडक के पुत्र श्रृंगी को एक दिव्य ज्ञान प्राप्त है। वह पुत्र कामेष्टि यज्ञ के द्वारा किसी को भी संतान सुख प्रदान कर सकते हैं।


राजा दशरथ पैदल ही अपनी तीनों रानियों के साथ चल पड़ते हैं। शिष्यों को राजा दशरथ के आने की सूचना मिलती है।  "गुरुदेव! महाराज दशरथ हमारे आश्रम पधारे हैं और आप से मिलने की अनुमति चाहते हैं।" दशरथ का नाम सुनते ही ऋषि अपने आसन से उठ कर राजा का स्वागत करते हैं। " कहिए राजन्! कैसे आना हुआ?"ऋषि माता शांता अपनी माता कौशल्या को देखकर अति प्रसन्न होती हैं और दोनों गले लगती हैं। "गुरुदेव! आपसे क्या छुपाना आप हमारे दुःख से भलीभाती परिचित हैं? कई वर्ष बीत गए और अभी तक हमारी प्रजा राजकुमार के सुख से वंचित है।"" ठीक है राजन्! मैं एक ऐसा यज्ञ जानता हूं जिससे आपकी तीनों रानियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है।" राजा यह वचन सुनकर अति हर्षित होते हैं, उन्हें लगता हैं जैसे वह अब इस वंश हीनता के कलंक से मुक्त हो सकेंगे, और अपने सूर्य वंश को आगे बढ़ाने में सहयोग दे सकेंगे। अगले दिन पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन किया जाता है। यह यज्ञ बारह दिनों तक चलता है और एक दिन यज्ञ से अग्नि देव अपने हाथों में खीर का कटोरा लेकर प्रकट होते हैं।


"राजन्! हम देवता आपके यज्ञ से अति प्रसन्न हुए। आप यह खीर अपने तीनों रानियों को खिला दीजिए गा। आपको अवश्य ही पुत्रों की प्राप्ती होंगी, ऐसे पुत्र जो इस इक्ष्वाकु वंश को सदैव के लिए अमर कर देंगे।"राजा दशरथ अग्नि देव को प्रणाम करते हैं।

ऋषि श्रृंगी खीर ग्रहण करते हैं और उसे रानियों को एक समान बाट कर खाने का आदेश करते हैं। रानियां प्रसन्नता पूर्वक खीर ग्रहण करती हैं।

राजा दशरथ हाथ जोड़ कर कहते हैं—"हम आपके बहुत ऋणी हैं, ऋषि श्रृंगी। हमारे यज्ञ को सफल बनाने के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद।


आश्रम और अयोध्या नगरी में इस समय उत्सव का वातावरण है। समयानुसार अयोध्या में चार राजकुमारों का जन्म होता है। कौशल्या से राम, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेई से भरत का जन्म हुआ।



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