top of page

रुद्राष्टकम् का पाठ क्यों करें? -हिन्दी अनुवाद सहित

अपडेट करने की तारीख: 10 जुल॰


श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र तुलसीदास द्वारा भगवान् शिव की स्तुति हेतु रचित छंद है। इसका उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है। तुलसीदास कलियुग के कष्टों का वर्णन करते हैं और उससे मुक्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ करने का सुझाव देते हैं।


rudraashtakam ka paath kyon karen

श्री रुद्राष्टकम्: भगवान शिव की स्तुति का महान छंद


श्री रुद्राष्टकम्, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान शिव की महिमा और कृपा का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में मिलता है। तुलसीदास जी ने इस महान छंद में कलियुग के कष्टों का वर्णन करते हुए भगवान शिव की आराधना को उनके समाधान के रूप में प्रस्तुत किया है। यह स्तोत्र भुजङ्प्रयात् छंद में लिखा गया है और माना जाता है कि इसकी नियमित जाप से सभी संकट पल-भर में दूर हो जाते हैं।


शिव रुद्राष्टकम का महत्व


शिव रुद्राष्टकम पाठ भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली साधन माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आनंद, मनोबल और सौभाग्य की वृद्धि होती है, और शत्रुओं का नाश होता है। इसे लगातार 7 दिन तक सुबह-शाम करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता है। इस महान स्तोत्र का जाप करने से भक्तों को शिव जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में शांति और समृद्धि आती है।


शिव रुद्राष्टकम का पाठ


शिव रुद्राष्टकम का पाठ भगवान शिव की आराधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके नियमित पाठ से भक्तों को उनके जीवन में आने वाले कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। तुलसीदास जी ने इस स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, जिससे यह स्तोत्र शिवभक्तों के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गया है।


पाठ विधि


  1. तैयारी: शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. स्थान: किसी शांत और पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करें।

  3. संकल्प: मन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें।

  4. पाठ: श्री रुद्राष्टकम का पाठ करें, और शिव जी का ध्यान करें।


श्री रुद्राष्टकम भगवान शिव की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस स्तोत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि इसके पाठ से जीवन के सभी संकट और समस्याएं दूर हो जाती हैं। शिव रुद्राष्टकम पाठ भगवान शिव की आराधना का एक अनमोल साधन है, जो प्रत्येक शिवभक्त के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

भक्तिभाव से भरे इस स्तोत्र का जाप करके हम भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। जय शिव शंकर!


रुद्राष्टकम्


नमामीशमीशान निर्वाणरूपंविभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ 1 ॥


निराकारमोंकारमूलं तुरीयंगिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालुंगुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥ 2 ॥


तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरंमनोभूतकोटिप्रभासी शरीरम् ।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगालसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगम् ॥ 3 ॥


चलत्कुंडलं शुभ्रनेत्रं विशालंप्रसन्नाननं नीलकंठं दयालुम् ।

मृगाधीशचर्मांबरं मुंडमालंप्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ 4 ॥


प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशंअखंडं भजे भानुकोटिप्रकाशम् ।

त्रयीशूलनिर्मूलनं शूलपाणिंभजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ 5 ॥


कलातीतकल्याणकल्पांतकारीसदासज्जनानंददाता पुरारी ।

चिदानंदसंदोहमोहापहारीप्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ 6 ॥


न यावदुमानाथपादारविंदंभजंतीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शांति संतापनाशंप्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ 7 ॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजांनतोऽहं सदा सर्वदा देव तुभ्यम् ।

जराजन्मदुःखौघतातप्यमानंप्रभो पाहि शापान्नमामीश शंभो ॥ 8 ॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतुष्टये ।

ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शंभुः प्रसीदति ॥ 9 ॥


॥ इति श्रीरामचरितमानसे उत्तरकांडे श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥


हिन्दी अनुवाद


जो मोक्षस्वरूप, जो सर्वत्र विराजमान हैं , ब्रह्म और वेद स्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निज स्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणातीत, इच्छा रहित, नित्य चेतन आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूँ। ॥१॥


निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमन करता हूँ।॥२॥


जो हिमाचल पर्वत के समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्र और गले में सर्प सुशोभित है।॥३॥


जिनके कानों में कुण्डल चलायमान हैं, सुंदर और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं, जो सिंहचर्म और जिनको मुंडमाल धारण करना प्रिय हैं, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं प्रणाम हूँ।॥४॥


प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार कर दुःख (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) नाश करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले ऐसे भवानी के पति श्री शंकर को मैं प्रणाम हूँ।॥५॥


सम्पूर्ण कलाओं से पूर्ण,, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को आनंद प्रदान करने वाले, तीनों लोकों के स्वामी।, जो सत् चित आनंद है और मोह को हरने वाले महादेव प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।॥६॥


आपके कमल समान चरण के वंदना के द्वारा इह लोक और पर लोक में सुख प्रदान करने वाले और समस्त तापों का नाश करने वाले, समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभु , प्रसन्न होइये।॥७॥


मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। वृद्धावस्था, जन्म, दु:खों आदि से संतप्त दु:खों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।॥८॥


विद्वानों द्वारा कहे हुए जो भगवान रुद्र का यह अष्टक का पाठ करता है। उससे भगवान शंकर अति प्रसन्न होते हैं।








15 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page