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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते ही मिलेंगे चमत्कारी लाभ

अपडेट करने की तारीख: 10 जुल॰



सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से विपदाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं और समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। ये सिद्ध स्त्रोत है और इसे करने से दुर्गासप्तशती पढ़ने के समान पुण्य मिलता है।



सिद्ध कुंजिका स्तोत्र: चमत्कारी लाभ और महत्व


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी स्तोत्र है, जिसे भक्तजन समस्त विपदाओं और कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पाठ करते हैं। इसे सिद्ध स्तोत्र माना गया है और इसके पाठ का फल श्री दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ के समान प्राप्त होता है। आइए, इस पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें और इसके माध्यम से अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करें।


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर में उन्नति, विद्या में प्रगति, और शारीरिक एवं मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान इसका पाठ करके व्यक्ति दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ के बराबर पुण्य अर्जित कर सकता है।


कुंजिका स्तोत्र का महत्व


इस स्तोत्र का नाम 'सिद्ध कुंजिका' इसीलिए रखा गया है क्योंकि यह समस्याओं का कुंजी रूप में समाधान प्रदान करता है। जब किसी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा हो या किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, तब सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। भगवती दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र व्यक्ति की रक्षा करता है और उसे सुख-समृद्धि प्रदान करता है।


पाठ विधि


  1. तैयारी: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक पवित्र स्थान पर बैठें।

  2. स्थापन: देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।

  3. संकल्प: मन में देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें।

  4. पाठ: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें और भगवती दुर्गा का ध्यान करें।


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस स्तोत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि इसके पाठ से जीवन के सभी संकट और समस्याएं दूर हो जाती हैं। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ देवी दुर्गा की आराधना का एक अमूल्य साधन है, जो प्रत्येक भक्त के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

भक्तिभाव से भरे इस स्तोत्र का जाप करके हम देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। जय माता दी!


सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्


ॐ अस्य श्रीकुंजिकास्तोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः,श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्,मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।


शिव उवाच


शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् । येन मंत्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत् ॥ 1 ॥


न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् । न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ 2 ॥


कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3 ॥


गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति । मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम् ।


पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ 4 ॥


अथ मंत्रः ।


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ।


ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ 5 ॥ इति मंत्रः ।


नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि । नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ 6 ॥


नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि । जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ 7 ॥


ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका । क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥


चामुंडा चंडघाती च यैकारी वरदायिनी । विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ॥ 9 ॥


धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ 10 ॥


हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी । भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ 11 ॥


अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षम् । धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥


पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा । सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ 13 ॥


कुंजिकायै नमो नमः ।


इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे । अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ 14 ॥


यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ 15 ॥


इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।

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