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तुलसीदास की रामचरितमानस: भक्ति और ज्ञान का संगम

अपडेट करने की तारीख: 31 जुल॰

तुलसीदास की 'रामचरितमानस' भारतीय साहित्य और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे भक्ति और ज्ञान के अद्वितीय संगम के रूप में माना जाता है। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन की कथा को अवधी भाषा में प्रस्तुत करता है, जिसमें उनके जन्म, बचपन, वनवास, रावण वध और राज्याभिषेक की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। तुलसीदास ने इस ग्रंथ के माध्यम से भक्ति की गहराइयों और जीवन की नैतिक शिक्षाओं को उजागर किया है। 'रामचरितमानस' ने भारतीय समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य स्थापित किए हैं, और यह आज भी प्रेरणा का महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। इस ग्रंथ ने भारतीय लोकजीवन में गहरी छाप छोड़ी है और इसके द्वारा प्रस्तुत भक्ति, ज्ञान और सांस्कृतिक समृद्धि के संदेश सदीयों से लोगों को मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।


तुलसीदास की रामचरितमानस

तुलसीदास का नाम भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी अमर कृति 'रामचरितमानस' को भक्ति और ज्ञान का संगम माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।


तुलसीदास की रामचरितमानस


तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा, जो भारतीय साहित्य में एक बहुमूल्य ग्रंथ है। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन, आदर्शों और कामों को बताता है। यह अवधी भाषा में लिखा गया ग्रंथ सात कांडों में विभाजित है। इन सात कांड के नाम बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड, उत्तरकाण्ड है। जिसमें बालकाण्ड को सबसे बड़ा कांड और किष्किन्धाकाण्ड कांड को सबसे छोटा कांड बताया गया है। इस काव्य में तुलसीदास ने भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम दिखाया है; वे एक ओर भगवान राम की भक्ति करते हैं और दूसरी ओर जीवन के गहरे ज्ञान और नैतिक शिक्षाओं को बताते हैं। "रामचरितमानस" धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है; यह भारतीय संस्कृति और समाज की विविधता और एकता को भी चित्रित करता है। इस ग्रंथ ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला है और आज भी भक्ति, ज्ञान और सांस्कृतिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।


रामचरितमानस का निर्माण


इस लेख को हिंदी साहित्य (अवधी साहित्य) में एक महत्वपूर्ण कृति माना जाता है। इसे तुलसीकृत रामायण या तुलसी रामायण भी कहलाता है। भारतीय संस्कृति में श्रीरामचरितमानस का एक विशिष्ट धार्मिक स्थान है। यह एक पवित्र ग्रंथ है जो शिव की प्रेरणा से तुलसी द्वारा रचित है। सुंदर काण्ड का पाठ शारद नवरात्रि में नौ दिनों तक किया जाता है। मंगलवार और शनिवार को रामायण मण्डलों द्वारा पाठ भी किया जाता है।


श्रीरामचरितमानस में श्रीराम को अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरिनारायण भगवान के अवतार के रूप में चित्रित किया गया है, जबकि महर्षि वाल्मीकि की रामायण में श्रीराम को एक आदर्श मानव चरित्र के रूप में चित्रित किया गया है। जिसमें यह बताया गया है कि लोगों को अपने जीवन को कैसे जीना चाहिये, चाहे कितने भी अवरोध हों, हमें मर्यादा का त्याग नहीं करना चाहिये। श्री श्रीराम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अद्भुत शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों और छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।


श्रीरामचरितमानस लिखने में 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन लगे, और1576 ईस्वी के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन समाप्त हुआ।


श्री मधुसूदन सरस्वती जी ने रामचरितमानस को पढ़ कर अपनी सम्मति देते हुए लिखा है।


आनन्दकानने ह्यस्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतरुः ।

कवितामञ्जरी भाति रामभ्रमरभूषिता ॥


इस काशीरूपी आनन्दवन में तुलसीदास एक चलता-फिरता तुलसी का पौधा है । उसकी कवितारूपी मञ्जरी बड़ी ही सुन्दर है, जिस पर श्रीरामरूपी भँवरा सदा मँडराया करता है।


भक्ति का महत्व


'रामचरितमानस' में भक्ति का महत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। तुलसीदास ने राम को परमात्मा के रूप में प्रस्तुत किया है और उनके प्रति अटूट भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया है। यह भक्ति साधक को ईश्वर से जोड़ने का माध्यम बनती है और उसे आत्मिक शांति प्रदान करती है।


तुलसीदास की 'रामचरितमानस' में भक्ति का अत्यधिक महत्व है। उन्होंने भगवान राम को परमात्मा के रूप में प्रस्तुत करते हुए भक्ति को जीवन का सर्वोच्च मार्ग बताया है। भक्ति के माध्यम से तुलसीदास ने यह समझाने का प्रयास किया है कि ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका भक्ति है।


"तुलसीदास जड़-चेतन हारा। राम भजन जानै बिनु बारा।।" तुलसीदास कहते हैं कि राम का भजन (स्मरण) किए बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता। भक्ति ही जीवन का सार है।


"राम नाम मणि दीप धरु जीह देहरीं द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहु जौं चाहसि उजिआर।।" तुलसीदास कहते हैं कि राम का नाम मणि (रत्न) दीपक के समान है, जिसे यदि जीभ रूपी देहरी (द्वार) पर रखा जाए तो भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला होता है। यानी, राम का नाम जपने से आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार के अंधकार का नाश होता है।


"भव भय प्रबिसनु बिनु सेवक संता। मन क्रम बचन करम परिपंता।।" भक्ति के बिना संसार के भय से पार पाना असंभव है। मन, वचन और कर्म से की गई भक्ति ही ईश्वर को प्रसन्न कर सकती है।


"भक्ति विमुख सुलभ करि कृपा करी जन जानि। स्वभाव सहज सज्जन, विपत्ति परिहरि आन।।" ईश्वर का स्वभाव ही है कि वे सज्जनों पर कृपा करते हैं और विपत्ति को दूर करते हैं। भक्ति करने वालों को वे सहज ही अपनी कृपा से अनुग्रहित करते हैं।


"भव सागर सब जगत को, चाहत पार न कोइ।राम कृपा बिनु तात एहि, तरइ न कोउ न होइ।।" तुलसीदास कहते हैं कि संसार के भवसागर को पार करने की इच्छा तो सब रखते हैं, परंतु राम की कृपा के बिना कोई भी इसे पार नहीं कर सकता।


इन छंदों से स्पष्ट होता है कि तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' में भक्ति को सर्वोपरि स्थान दिया है। उनका मानना था कि भक्ति के बिना जीवन अधूरा है और राम की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग भक्ति ही है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है और आत्मिक शांति प्राप्त कर सकता है।


ज्ञान का प्रकाश


भक्ति के साथ-साथ 'रामचरितमानस' में ज्ञान का भी महत्वपूर्ण स्थान है। तुलसीदास ने विभिन्न पात्रों के माध्यम से जीवन के विभिन्न शिक्षाओं को प्रस्तुत किया है। राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, भरत, और अन्य पात्रों के चरित्र और उनके कार्यों में जीवन के गहरे ज्ञान की झलक मिलती है। ये पात्र अपने जीवन में विभिन्न समस्याओं का सामना करते हैं और उनके समाधान के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।


"धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।।" धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा विपत्ति के समय में ही होती है। कठिनाइयों के दौरान ही इनकी सच्चाई और महत्व स्पष्ट होता है।


"जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिनहिं बिलोकत पातक भारी।।" जो मित्र आपके दुख में दुखी नहीं होता, उसे देखकर पाप होता है। सच्चा मित्र वही है जो आपके दुख में आपके साथ हो।


"सचिव, बैद, गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भय आस। राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिहिं नास।।" मंत्री, वैद्य और गुरु - ये तीन यदि भय या लालच के कारण प्रिय बोलते हैं, तो राज्य, धर्म और शरीर - ये तीन शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।


"परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।" दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा देने के समान कोई अधर्म नहीं है। सबसे बड़ा धर्म दूसरों की सेवा और सबसे बड़ा पाप दूसरों को कष्ट देना है।


"प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।।" यहां पर पिता सागर भगवान से कहते हैं अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी पंरतु आपने ही तो हमें मर्यादा का पालन करना सिखाया है। भगवान राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर सभी को अपने कर्तव्यों का पालन करने की शिक्षा दी है।


"जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।" जिस प्रकार की भावना होती है, उसी प्रकार का भगवान का स्वरूप दिखता है। व्यक्ति के मनोभाव के अनुसार ही उसे भगवान का अनुभव होता है।

इन उद्धरणों से यह स्पष्ट होता है कि 'रामचरितमानस' में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान और शिक्षाएं दी गई हैं। तुलसीदास ने राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, हनुमान आदि पात्रों के माध्यम से जीवन की सच्चाइयों और आदर्शों को प्रस्तुत किया है। यह ज्ञान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है


तुलसीदास का 'रामचरितमानस' वास्तव में ज्ञान का एक महान स्रोत है। इसमें जीवन के हर पहलू को छुआ गया है और इसे समझने और अपनाने से व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकता है। ज्ञान का यह प्रकाश व्यक्ति को अंधकार से बाहर निकालकर उसे सत्य और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करता है।


सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान


तुलसीदास की 'रामचरितमानस' भारतीय संस्कृति और समाज का एक अद्वितीय दर्पण है। इस महाकाव्य ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। तुलसीदास ने अपने समय की सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत कर उनके समाधान का मार्ग भी दिखाया है।


सामाजिक योगदान


  1. सामाजिक समरसता: "जन्म जाति गुण बुद्धि विभु, विविध पुराण श्रुति गावत।करम प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करइ सो तस फल चाखा।।" तुलसीदास ने जन्म, जाति, गुण और बुद्धि की भिन्नताओं को स्वीकार करते हुए कर्म को सबसे महत्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार, व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर ही फल पाता है, न कि उसकी जाति या जन्म के आधार पर।

  2. नारी सम्मान: "ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।सकल ताड़ना के अधिकारी।।" इस प्रसिद्ध पंक्ति को कई बार गलत अर्थ में लिया गया है, लेकिन तुलसीदास के समय की सामाजिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने महिलाओं के प्रति सम्मान और स्नेह की आवश्यकता पर बल दिया। 'रामचरितमानस' में सीता, अनुसुइया, और शबरी जैसी नारी पात्रों के माध्यम से उन्होंने नारी शक्ति और उनके सम्मान को उजागर किया है।

  3. सामाजिक एकता: "नर कर करम सुभासुभ हेतू।जाहिं विदित तासु भव हेतू।।" व्यक्ति को अच्छे और बुरे कर्मों के परिणाम का ज्ञान होना चाहिए। समाज में एकता और सद्भावना बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि लोग अपने कर्मों का सही आकलन करें और उसके अनुसार आचरण करें।


सांस्कृतिक योगदान


  1. भाषाई योगदान: 'रामचरितमानस' अवधी भाषा में लिखा गया है, जो उस समय की आम जनता की भाषा थी। इस ग्रंथ ने अवधी को साहित्यिक और धार्मिक मान्यता दी, जिससे यह भाषा आम जनता के बीच प्रचलित हो गई और इसे एक नई पहचान मिली।

  2. लोकगीत और लोकसंस्कृति: 'रामचरितमानस' ने भारतीय लोकसंस्कृति को भी समृद्ध किया। इसके विभिन्न अंशों को लोकगीतों, भजनों और रामलीलाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। रामलीला, जो कि रामचरितमानस पर आधारित नाटकीय प्रस्तुति है, भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।

  3. सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन: "राम नाम मणि दीप धरु जीह देहरीं द्वार।तुलसी भीतर बाहेरहु जौं चाहसि उजिआर।।" तुलसीदास के अनुसार, राम के नाम का स्मरण करना एक ऐसा दीपक है जो जीवन को अंदर और बाहर दोनों ओर से उज्ज्वल करता है। इस प्रकार, रामचरितमानस ने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  4. त्योहार और उत्सव: रामचरितमानस ने कई धार्मिक त्योहारों और उत्सवों की परंपरा को भी स्थापित किया। रामनवमी, दशहरा और दीपावली जैसे त्योहारों को समाज में विशेष महत्व मिला, जिससे सांस्कृतिक एकता और सामाजिक जुड़ाव बढ़ा।

तुलसीदास

तुलसीदास की 'रामचरितमानस' न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह भारतीय समाज और संस्कृति का महत्वपूर्ण आधार भी है। इस महाकाव्य ने सामाजिक समरसता, नारी सम्मान, और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है। भाषा, लोकगीत, और धार्मिक त्योहारों के माध्यम से भारतीय समाज को एकजुट करने और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस प्रकार, तुलसीदास का यह अमर काव्य सदियों से समाज और संस्कृति के निर्माण और संवर्धन में योगदान देता आ रहा है और आने वाले समय में भी यह भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम बनकर अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाता रहेगा। 'रामचरितमानस' धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का सारांश मिलता है, जिससे भारतीय समाज को भक्ति और ज्ञान का अमूल्य उपहार प्राप्त हुआ है।

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