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वेद व्यास: भारतीय धर्म और दर्शन के महान ऋषि

अपडेट करने की तारीख: 23 जून

वेद व्यास भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन में एक केंद्रीय और अद्वितीय स्थान रखते हैं। उनकी रचनाएँ और शिक्षाएँ न केवल प्राचीन भारत में बल्कि आज भी धार्मिक और दार्शनिक चिंतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक ऋषि के रूप में वेद व्यास का योगदान अत्यंत व्यापक और स्थायी है, जिसने उन्हें भारतीय धार्मिक परंपरा में अमर बना दिया है।




वेद व्यास, जिन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है, भारतीय महाकाव्य महाभारत के रचयिता और एक महान ऋषि माने जाते हैं। वेद व्यास का जन्म द्वापर युग में हुआ था और वे महर्षि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे। इनकी पत्नी का नाम आरुणी था और इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव।


प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। निम्नोक्त श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है।

नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास को मेरा नमस्कार है।

नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।।महान वसिष्ठ-मुनि को मैं नमन करता हूँ। (वसिष्ठ के पुत्र थे 'शक्ति'; शक्ति के पुत्र पराशर, और पराशर के पुत्र व्यास


ऋषि के रूप में वेद व्यास का स्थान:


एक ऋषि के रूप में वेद व्यास भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित स्थान रखते हैं। उनकी भूमिका और योगदान बहुआयामी और गहन हैं।


1. वेदों का विभाजन और संकलन:

वेद व्यास ने चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद) का विभाजन किया और उन्हें व्यवस्थित किया। इस कारण से उन्हें वेद व्यास कहा जाता है। यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे वेदों का अध्ययन और शिक्षण सुगम हुआ।


2. महाभारत के रचयिता:

वेद व्यास ने महाभारत जैसे विशाल महाकाव्य की रचना की, जो न केवल एक महान कथा है बल्कि उसमें गहन दार्शनिक, नैतिक और धार्मिक शिक्षाएँ भी समाहित हैं। महाभारत के माध्यम से उन्होंने समाज को धर्म, नीति, और कर्तव्य का संदेश दिया। उन्होंने तीन वर्षों के अथक परिश्रम से महाभारत ग्रंथ की रचना की थी-


त्रिभिर्वर्षे: सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनोमुनि:। महाभारतमाख्यानं कृतवादि मुदतमम्।। आदिपर्व - (५६/५२)[4]


संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि के बाद व्यास ही सर्वश्रेष्ठ कवि हुए हैं। इनके लिखे काव्य 'आर्ष काव्य' के नाम से विख्यात हैं। व्यास जी का उद्देश्य महाभारत लिख कर युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि इस भौतिक जीवन की नि:सारता को दिखाना है। उनका कथन है कि भले ही कोई पुरुष वेदांग तथा उपनिषदों को जान ले, लेकिन वह कभी विलक्षण नहीं हो सकता क्योंकि यह महाभारत एक ही साथ अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा कामशास्त्र है।

यो विध्याच्चतुरो वेदान् सांगोपनिषदो द्विज:। न चाख्यातमिदं विद्य्यानैव स स्यादिचक्षण:।।

अर्थशास्त्रमिदं प्रोक्तं धर्मशास्त्रमिदं महत्। कामाशास्त्रमिदं प्रोक्तं व्यासेना मितु बुद्धिना।। महा. आदि अ. २: २८-८३


3. पुराणों का रचनाकार:

वेद व्यास को अठारह प्रमुख पुराणों का रचनाकार माना जाता है, जिनमें भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण प्रमुख हैं। इन पुराणों ने हिंदू धर्म और दर्शन को समृद्ध किया और जनसामान्य के लिए धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं को सुलभ बनाया। वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। पुराणों को उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्यों ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं।


4. ब्रह्मसूत्र के संकलक:

वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण ग्रंथ ब्रह्मसूत्र को संकलित कर वेद व्यास ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों की व्याख्या और समन्वय किया। यह ग्रंथ आज भी वेदांत दर्शन के अध्ययन और अन्वेषण में प्रमुख स्थान रखता है।

इन सूत्रों में सांख्य, वैशेषिक, जैन और बौद्ध मतों के प्रति संकेत मिलता है। गीता का भी उल्लेख होता है।


5. धर्म और नैतिकता के शिक्षक:

वेद व्यास ने अपने शिष्यों और अन्य ऋषियों को धर्म और नैतिकता का उपदेश दिया। उनके शिष्य, पैल, जैमिनी, वैशम्पायन, सुमंतु मुनि, रोम हर्षण जैसे शिष्यों ने उनके शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान किया। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तु मुनि को पढ़ाया।


6. उपनिषदों में योगदान:

उपनिषदों की रचना में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है। उपनिषदों के माध्यम से उन्होंने आत्मा, ब्रह्म, और मोक्ष के गहन दार्शनिक सिद्धांतों की व्याख्या की।


महाभारत में वेद व्यास की भूमिका:


वेद व्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि वे इस महाकाव्य के कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी और सलाहकार भी हैं। उन्होंने महाभारत की कथा को गणेश जी को सुनाया था, जिन्होंने इसे लिपिबद्ध किया। महाभारत में वे कई प्रमुख पात्रों के मार्गदर्शक भी रहे हैं। वेद व्यास का स्थान महाभारत में अत्यंत महत्वपूर्ण और केंद्रीय है, क्योंकि उन्होंने ही इस अद्वितीय कथा को संकलित कर संसार को प्रदान किया।


वेद व्यास ने महाभारत की कथा को संकलित किया और इसे गणेश जी को सुनाया, जिन्होंने इसे लिखा। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है जिसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। कुछ महत्वपूर्ण श्लोक इस प्रकार हैं।

"धर्मो रक्षति रक्षितः।""धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है।""कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।""तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में नहीं।""यतो धर्मस्ततो जयः""जहाँ धर्म है, वहाँ विजय निश्चित है।""विद्या विनयेन शोभते।""ज्ञान विनम्रता से शोभित होता है।""नास्ति सत्यात् परो धर्मः।""सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।""धैर्यं सर्वत्र साधनम्।""धैर्य सभी परिस्थितियों में साधन है।"ये उद्धरण महाभारत के भीतर वेद व्यास के गहरे और दार्शनिक विचारों को प्रतिबिंबित करते हैं।


धृतराष्ट्र को युद्ध के दृश्य दिखाने के संदर्भ में संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान कर गीत का माहात्म्य को सुगम बनाया "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।""हे भारत, जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूँ।""यो धर्मेण युज्यते स पाण्डवः।""जो धर्म के साथ जुड़ा है, वही पांडव है।""यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।""जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहाँ श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है।""तत्त्वतः तु विदुर्मां ते पाण्डवा धनुर्धराः।""वास्तव में वे पांडव ही मुझे जानते हैं।"


वेद व्यास को महाभारत में एक महान ऋषि और मार्गदर्शक के रूप में चित्रित किया गया है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पात्रों को समय-समय पर मार्गदर्शन और सलाह दी। वे पांडवों और कौरवों दोनों के ही कुलगुरु थे।उन्होंने धृतराष्ट्र को विभिन्न अवसरों पर सलाह दी और युद्ध के परिणामों के बारे में बताया।


"अधर्मो हि अमृतात् प्रेत्य लोकान् हन्ति यथा विषम्।""अधर्म मृत्यु के बाद भी मनुष्य को उसी प्रकार नष्ट करता है जैसे विष।""धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।""धर्म की हत्या करने वाला स्वयं मारा जाता है, धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है। इसलिए धर्म की हत्या न करें, अन्यथा धर्म हमारी हत्या कर देगा।""परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।""साधुओं की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए, धर्म की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ।""दुर्बलस्य बलं राजा, निर्बलस्य बलं बलम्। असिद्धस्य बलं विद्या, विद्या सर्वस्य भूषणम्।""दुर्बल का बल राजा होता है, निर्बल का बल बल होता है, असिद्ध का बल विद्या होती है, और विद्या सबका आभूषण होती है।""अहिंसा परमोधर्मः।""अहिंसा परम धर्म है।""न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।""ज्ञान ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा हड़प सकता है, न भाई बाँट सकता है, न भार ढो सकता है। व्यय करने पर यह सदैव बढ़ता है और यह सभी धनों में श्रेष्ठ है।"ये उद्धरण वेद व्यास की महानता, उनके ज्ञान और मार्गदर्शन को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। उन्होंने महाभारत के प्रमुख पात्रों को समय-समय पर महत्वपूर्ण सलाह और मार्गदर्शन दिया।


वेद व्यास ने कई महत्वपूर्ण घटनाओं में भाग लिया और उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने धृतराष्ट्र को युद्ध के दृश्य दिखाए, जो वे स्वयं देख नहीं सकते थे। उन्होंने गांधारी को वरदान दिया जिसके कारण उन्हें कुरु राजकुमारों का जन्म हुआ। जब युधिष्ठिर और उनके भाई वनवास पर थे, तब वेद व्यास ने उन्हें प्रेरणा और सलाह दी। उन्होंने अर्जुन को दिव्यास्त्रों की प्राप्ति के लिए तपस्या करने का निर्देश दिया। वेद व्यास ने भीम और द्रौपदी को वनवास के दौरान सांत्वना दी और उनके दुखों को कम करने के उपाय बताए।


महाभारत युद्ध के बाद, वेद व्यास ने युधिष्ठिर को धर्म और राजनीति पर शिक्षा दी। उन्होंने युधिष्ठिर को उनके कर्तव्यों का बोध कराया और उन्हें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया। युधिष्ठिर को धर्म और राजनीति पर शिक्षा देने के संदर्भ में:"धर्मेण धार्यते लोकाः""धर्म से ही लोकों का धारण होता है।""सत्यं वद, धर्मं चर।""सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।"कर्तव्यों का बोध कराने के संदर्भ में:"नैव क्लेशोऽस्ति तज्ज्ञाने, यथा स्यान्निरये भवः""ज्ञान से कभी क्लेश नहीं होता, जैसे अज्ञान से नरक प्राप्त होता है।""स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः""अपने धर्म में मरना भी श्रेयस्कर है, दूसरों का धर्म भयावह होता है।"भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के संदर्भ में:"वयमिन्द्रजितो देवाः, सत्येन महता हतः""हम देवता सत्य के द्वारा इन्द्र को जीत सकते हैं।""असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।। ""हे महाबाहु, निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है, किन्तु अभ्यास और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता


वेद व्यास महाभारत के मुख्य स्तंभ थे। उनकी उपस्थिति और मार्गदर्शन ने इस महाकाव्य की गहराई और प्रभाव को बढ़ाया। वे एक ऋषि, मार्गदर्शक, और रचयिता के रूप में महाभारत में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, वेद व्यास का अद्वितीय योगदान उन्हें भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परंपरा में अमर बना देता है। उनकी शिक्षाओं और रचनाओं का प्रभाव आज भी समाज में देखा जा सकता है, और वे निस्संदेह भारतीय संस्कृति के महानतम ऋषियों में से एक हैं। उनके कार्यों ने न केवल प्राचीन भारत को, बल्कि आधुनिक युग को भी समृद्ध किया है, जिससे वे अनंत काल तक स्मरणीय रहेंगे।




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