वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है। महाविद्या पंथ में दस देवी कही जाती हैं—काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातङ्गी और कमला। छिन्नमस्ता का अर्थ है, कटे हुए सिर वाली देवी। यह देवी खंड योग को दर्शाती हैं। जिसमें वह अपना ही सर काट कर अपने हाथ में पकड़ लेती हैं। यह देवी शक्ति, दिव्य स्त्री-ऊर्जा के उग्र स्वरुप का रूप है।
देवी के स्वरुप पर दृष्टि डालें तो उनके एक हाथ में अपना खुद का मस्तक है और दूसरे हाथ में खडग धारण कर रखा है। माता तीन नेत्रों से शोभित हैं। और वह शयन करते हुए राति और कामदेव पर विराजमान हैं। वह मुंडमाला और सर्प माला से सुशोभित हैं। उनके केश खुले हुए हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। दो धार उनकी सहेलियाँ डाकिनी और शाकिनी के मुख पर जा रही है और तीसरी धार का वह स्वयं पान कर रही हैं।
छिन्नमस्ता महादेवी का बीजाक्षर मंत्र 'हूं' है। हूं बीज मंत्र अपने आप में शिव और शक्ति का स्वरूप है। इस मंत्र के जाप का एक मात्र उद्देश्य शत्रुओं का नाश है। 'हूं' 'हकारम्' और 'ऊंकारम्' का योग है। 'हकारम' शक्ति बीज मंत्र है जिसका तात्पर्य स्थिर ज्ञान से है, 'ओम' शिव बीज मंत्र है जो आध्यात्मिक उन्नति देता है। इस बीजाक्षर मंत्र का जाप जोर से करने से आपके घर की सारी नकारात्मक शक्तियां का नाश हो जाए गा। इस मंत्र का जाप करने से ज्ञान, शत्रु विनाश और शिव की कृपा प्राप्त होती है। सायं में संध्या काल में माता की पूजा करनी चाहिए।
छिन्नमस्ता माता को महाविद्या में प्रचण्ड चण्ड के नाम से पूजा जाता है। जो आदिपराशक्ति का स्वरुप हैं और नव चंडियों में से एक हैं। उनके अन्य नाम इंद्राणी, वज्रवैरोचनी और चंदा प्रचंडी देवी हैं। उनकी अष्ट शक्तियाँ हैं— ढाकिनी, वर्णिनी, एका लिंग, महाभैरवी, भैरवी, इंद्राणी, अष्टांगी और संहारिणी। यह शत्रु नाश की मुख्य देवी हैं। कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने चिन्नमस्ता देवी की पूजा करके अपार बल अर्जित किया था।
देवी की अराधना से आयु, आकर्षण, धन और कुशाग्र बुद्धि प्राप्त होती है। पुराणों के अनुसार यह देवी प्राणतोषिनी हैं। इनका शुद्ध हृदय से विधिवत पूजन करने वाला व्यक्ति रोग और शत्रुओं से मुक्त हो जाता है।
माता छिन्नमस्ता —ग्रह दोष और शत्रु का नाश करती हैं--
शाम के समय प्रदोषकाल में दक्षिण-पश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं। लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र स्थापित करें। दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात हाथ जोड़कर छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें। तेल में नील मिलाकर दीपक जलाएं और नीले फूल (मन्दाकिनी अथवा सदाबहार) अर्पित करें। सूरमे का तिलक लगाएं और इत्र अर्पित करें। लोबान से धूप करें। उड़द से बने मिष्ठान का भोग लगाएं। तत्पश्चात बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से अष्टमुखी रुद्राक्ष माला से देवी के इस अद्भुत मंत्र का यथा संभव जाप करें।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनये हूं हूं फट स्वाहा।
जाप पूरा होने के बाद काले नमक की डली को बरगद के नीचे गाड़ दें। बची हुई सामग्री को जल प्रवाह कर दें। इस साधना से शत्रुओं का नाश होता है, रोजगार और नौकरी में प्रमोशन मिलती है और ग्रहदोष समाप्त होते हैं। कोर्ट-कचहरी, वाद-विवाद में निश्चित सफलता मिलती है। महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का मंदिर है.। यह मंदिर दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। यह मंदिर रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है। कहा जाता है, यह मंदिर 6000 साल पुराना है, कुछ लोग इसे महाभारत कालीन मानते हैं। रजरप्पा मंदिर की वास्तुकला असम के प्रसिद्ध कामख्या मंदिर के समान है। यहां माता के मंदिर के साथ भगवान सूर्य और भगवान शिव के दस मंदिर हैं।
Kommentare