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भगवान विष्णु के स्मरण से शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति- ॐ अपवित्रः पवित्रो मंत्र का महात्म्य

अपडेट करने की तारीख: 20 जुल॰


भगवान विष्णु, जिन्हें जल का देवता भी माना जाता है, का स्मरण करते हुए इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति सभी सांसारिक पापों से मुक्त हो जाता है। इस मंत्र का नियमित जाप केवल शारीरिक शुद्धि ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है।




ॐ अपवित्रः पवित्रो मंत्र का महात्म्य



ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥


यह मंत्र वायु पुराण से लिया गया है, जिसका उद्देश्य बाह्य और अंतर दोनों प्रकार की शुचिता से है। इस मंत्र के द्वारा आध्यात्मिक विकास भी सम्भव है। यदि कोई व्यक्ति नित्य इस मंत्र का जाप करे, तो वह शीघ्र ही श्री नारायण के समीप हो जाएगा। इस मंत्र का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी अवस्था में हो, यदि वह श्री हरि नारायण (पुण्डरीकाक्ष) का स्मरण करता है, तो वह अंदर और बाहर दोनों ही रूप से शुद्ध हो जाता है।


ॐ अपवित्रः पवित्रो मंत्र का महात्म्य अतुलनीय है। इस मंत्र का पाठ विभिन्न पूजा, स्नान या आध्यात्मिक अभ्यास के समय किया जाता है। इस मंत्र का उपयोग आध्यात्मिक शुद्धि और पवित्रता की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है।


पुण्डरीकाक्ष का अर्थ है जिसके नेत्र कमल के समान हों, अर्थात् भगवान विष्णु। भगवान विष्णु ही जल के देवता हैं। यदि कोई उनका जाप करते हुए स्नान करता है, तो विष्णु उसे सभी सांसारिक पापों से मुक्त कर देते हैं। नियमित रूप से स्नान करने के बाद पुरोहित द्वारा व्यक्ति के हाथों में गंगा जल अर्पित किया जाता है, जिसे इस मंत्र के जाप के साथ ग्रहण करना चाहिए।


इस प्रकार, इस पवित्र मंत्र के जाप से व्यक्ति न केवल बाह्य शुद्धि प्राप्त करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी करता है। यह मंत्र भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है और इसे नियमित रूप से जाप करने से जीवन में शांति और समृद्धि का अनुभव होता है।


इस मंत्र का आध्यात्मिक पक्ष यह है कि यह भगवान विष्णु के स्मरण की महिमा को दर्शाता है। यह बताता है कि भगवान विष्णु का नाम स्मरण करने से सभी प्रकार की अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं और मनुष्य पवित्र हो जाता है, चाहे उसकी बाहरी परिस्थिति या आंतरिक स्थिति कैसी भी हो। इसके आध्यात्मिक पक्ष को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:


  1. भगवान का स्मरण: यह मंत्र भगवान विष्णु के स्मरण को अत्यंत महत्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, भगवान का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य के पाप और अशुद्धियाँ समाप्त हो जाती हैं।


  1. अशुद्धि का नाश: चाहे शारीरिक, मानसिक या आत्मिक अशुद्धियाँ हों, भगवान विष्णु का स्मरण करने से ये सब समाप्त हो जाती हैं। इसका अर्थ है कि भगवान का नाम सर्वशक्तिमान और सर्वपवित्र है।


  1. सर्वस्थिति में शुद्धता: इस मंत्र के अनुसार, चाहे व्यक्ति किसी भी स्थिति में हो (पवित्र या अपवित्र), भगवान विष्णु का स्मरण करने से वह शुद्ध हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि भगवान का नाम किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को शुद्ध और पवित्र बना सकता है।


  1. आंतरिक और बाहरी शुद्धता: इस मंत्र में बाह्य और आंतरिक शुद्धता दोनों का उल्लेख है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान विष्णु का स्मरण करने से न केवल बाहरी शरीर बल्कि आंतरिक मन और आत्मा भी शुद्ध हो जाते हैं।


  1. आध्यात्मिक उन्नति: भगवान विष्णु का स्मरण व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। इससे मन और आत्मा की शुद्धि होती है, जो आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने में सहायता करती है।


यह मंत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान विष्णु का स्मरण किसी भी परिस्थिति में हमें शुद्ध और पवित्र बना सकता है, और उनके नाम का स्मरण करने से हमारे जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश और शांति आती है।





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